Engineer’s Day History: 15 सितंबर को इंजीनियर्स डे इसलिए मनाया जाता है क्योंकि इसी दिन वर्ष 1860 में देश के महान इंजीनियर और भारत रत्न मोक्षगुंडम विश्वेश्वरैया का जन्म हुआ था। इन्होंने देश की रचना कर भारत को एक नया रुप दिया है, जिसे शायद ही कोई भूला पाए। ये दिन देश के इंजीनियरों के प्रति सम्मान और उनके कार्य की सराहना के लिए मनाया जाता है। इस वर्ष हम उनकी 161वीं जयंती मना रहे हैं।
Happy Engineer’s Day | इंजीनियर्स डे का इतिहास और महत्व ( History and Significance of Engineers Day)
भारत सरकार द्वारा साल 1968 में डॉ. एम विश्वेश्वरैया की जन्मतिथि को इंजीनियर्स डे के रूप में घोषित किया गया था। उसके बाद से हर साल 15 सिंतबर को इंजीनियर्स डे मनाया जाता है। 15 सितंबर 1860 में मैसूर के कोलार जिले में पैदा हुए डॉ. एम विश्वेश्वरैया के पिता श्रीनिवास शास्त्री संस्कृत के विद्वान और आयुर्वेद चिकित्सक थे।
Happy Engineer’s Day | विश्वेश्वरैया की मां का नाम वेंकाचम्मा था। साधारण परिवार में जन्मे एम विश्वेश्वरैया जब मात्र 12 वर्ष के थे, तो उनके पिता का निधन हो गया। कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी की और फिर कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग, पुणे से सिविल इंजीनियरिंग की डिग्री ली।
Engineer’s Day | जिसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने इन्हें नासिक में सहायक इंजीनियर के पद पर नियुक्त किया। जब वह केवल 32 वर्ष के थे, उन्होंने सिंधु नदी से सुक्कुर कस्बे को पानी की पूर्ति भेजने का प्लान तैयार किया जो सभी इंजीनियरों को पसंद आया। सरकार ने सिंचाई व्यवस्था को दुरुस्त करने के उपायों को ढूंढने के लिए समिति बनाई। इसके लिए एमवी ने एक स्टील के दरवाजे बनाकर नए ब्लॉक सिस्टम को ईजाद किया और पानी के बहाव को रोक दिया। आज यह प्रणाली पूरे विश्व में प्रयोग में लाई जा रही है।
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Engineer’s Day | विश्वेश्वरैया ने मूसा व इसा नामक दो नदियों के पानी को बांधने के लिए भी प्लान तैयार किया था। इसके बाद उन्हें मैसूर का चीफ इंजीनियर नियुक्त किया गया। सर विश्वेश्वरैया को न केवल भारत सरकार द्वारा प्रशंसा मिली, बल्कि दुनिया भर से मानद पुरस्कार और सदस्यता भी मिली। 101 साल की उम्र में 14 अप्रैल 1962 को उनका निधन हो गया। लेकिन उनका जीवन आज भी हमारे देश के सभी इंजीनियरों के लिए प्रेरणा स्रोत है।
रेल यात्रा से जुड़ी रोचक कहानी (Interesting story related to train journey)
डॉ विश्वेश्वरैया ब्रिटिश शासन के दौरान एक बार रेलगाड़ी से सफर कर रहे थे। उस रेल में उनके साथ ज़्यादातर अंग्रेज़ यात्री थे, वे डॉ विश्वेश्वरैया को मूर्ख और अनपढ़ समझकर सफर के दौरान उनका मज़ाक उड़ा रहे थे, वहीं डॉ विश्वेश्वरैया गंभीर मुद्रा के साथ सोच में बैठे थे, उन्होंने अचानक रेल की जंज़ीर खींच कर गाड़ी को रोक दिया, थोड़ी देर में गार्ड आया और सवाल किया कि जंज़ीर किसने खींची।
Happy Engineer’s Day | तब डॉ. विश्वेश्वरैया ने कहा कि जंजीर मैंने खीचीं है, क्योंकि मुझे लग रहा है कि यहां से कुछ दूरी पर रेल की पटरी टूटी है। इसपर गार्ड ने पूछा कि आपको कैसे पता चला, तब विश्वेश्वरैया ने कहा कि पटरियों की आवाज और गाड़ी की स्वाभाविक गति में अंतर आया है। जब पटरी की जांच हुई तो पता चला कि एक जगह से रेल की पटरी के जोड़ खुले हुए हैं।
जरूरी तथ्य (Important facts About Engineers Day)
- कृष्णराज सागर बांध बनाना विश्वेश्वरैया के असाधारण कार्यों में से एक था। इसकी योजना वर्ष 1909 में बनायी गयी थी और वर्ष 1932 में यह पूरा हुआ।
- विश्वेश्वरैया ने भारत का पुनर्निर्माण और भारत के लिए नियोजित अर्थ व्यवस्था नामक पुस्तकें लिखीं और भारत के आर्थिक विकास का भी मार्गदर्शन किया।
- उनके द्वारा किये गये उत्कृष्ट कार्यों के लिए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1955 में भारत रत्न से सम्मानित किया। उन्हें ब्रिटिश सरकार द्वारा नाइटहुड अवार्ड (knighthood award) से भी सम्मानित किया गया था।
- इंजीनियरिंग शब्द लैटिन शब्द इंजेनियम से निकला है। इसका अर्थ है स्वाभाविक निपुणता।
- विश्वेश्वरैया मैसूर के दीवान थे और उनका कार्यकाल 1912-1918 ई. तक रहा।
- बॉम्बे में उन्होंने सिंचाई और पानी की बाढ़ के फाटकों की ब्लॉक प्रणाली शुरू की।
- बिहार और उड़ीसा में वह रेलवे ब्रिज प्रोजेक्ट और जलापूर्ति योजनाओं का हिस्सा रहे।
- इन्होंने मैसूर में कृष्णराज सागर बांध ग्वालियर में तिगरा बांध और पुणे के खड़कवासला जलाशय में बांध आदि काफी खास हैं, इसके अलावा हैदराबाद सिटी को बनाने का श्रेय भी डॉ. विश्वेश्वरैया को ही जाता है।
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