भारत जैसे देश में टीकाकरण अभियान की सफल शुरुआत की जितनी तारीफ की जाए कम होगी। इतना विशाल देश इतने बडे़ पैमाने पर कोई अभियान चला रहा है, तो उसमें कुछ शिकायतों का सामने आना लाजिमी है। और यह आम लोगों के लिए घबराहट का नहीं, बल्कि वैज्ञानिकों के लिए विचार का विषय होना चाहिए। किसी भी दवा का जब प्रयोग किया जाता है, तो उसके प्रभाव के साथ-साथ कुछ दुष्प्रभाव भी सामने आते हैं। चूंकि रिकॉर्ड समय में कोरोना वैक्सीन तैयार हुई हैं, इसलिए किसी-किसी पर उनके दुष्प्रभाव दिखाई पड़ सकते हैं।
इतिहास गवाह है, ज्यादातर टीकों के निर्माण में दशकों लगे हैं, लेकिन कोरोना ने हमें उतना समय नहीं दिया। कोरोना टीके के चंद दुष्प्रभाव को ध्यान में रखते हुए इस पृष्ठभूमि को भी ध्यान में लाना चाहिए कि कोरोना वायरस हर किसी पर समान रूप से प्रभाव नहीं छोड़ता है। किसी पर कोरोना का बहुत घातक असर होता है और किसी पर बहुत मामूली। इसका अर्थ यह हुआ कि शरीर-दर-शरीर कोरोना वायरस के प्रभाव में भी अंतर आ जाता है। कुछ लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छी होती है। आंकड़ों को अगर देखें, तो अच्छी रोग प्रतिरोधक क्षमता वालों को कोरोना ने न्यूनतम परेशान किया है। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि जब वायरस का दुष्प्रभाव समान नहीं है, तब वायरस के लिए बनी दवा का प्रभाव समान कैसे हो सकता है?
दवा की दुनिया के जानकार यह बात अच्छी तरह जानते हैं कि शायद ही कोई ऐसी दवा है, जिसका कोई दुष्प्रभाव न हो। एलोपैथी में ऐसी दवाओं की भरमार है, जो नाना प्रकार के रसायनों या रासायनिक समीकरणों से तैयार होती हैं और बहुत स्थापित दवाओं के भी दुष्प्रभाव चिकित्सा विज्ञान के लिए नए नहीं हैं। अत: कोरोना टीके पर भी हमें पूरे विश्वास के साथ चलना चाहिए। विशेष रूप से चिकित्सा समुदाय को टीके का स्वागत करना चाहिए। इसमें कोई शक नहीं कि इस टीकाकरण अभियान में दुष्प्रभावों के प्रति पहले से ही सचेत रहते हुए तमाम व्यवस्थाएं की गई हैं। जो लोग टीकाकरण के लिए सामने आ रहे हैं, उनके स्वास्थ्य की रक्षा सरकार के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी होनी चाहिए। टीका लेने के तत्काल बाद ही नहीं, बल्कि उसके प्रभाव के पुष्ट होने तक हर एक टीका प्राप्त व्यक्ति की खबर या निगरानी जरूरी है।
इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि टीके के जो भी प्रभाव या दुष्प्रभाव सामने आएं, उन्हें सही रूप में दर्ज किया जाए और उसकी जानकारी लोगों तक पहुंचाई जाए। टीकाकरण अभियान की बुनियाद ईमानदारी और पारदर्शिता पर टिकी होनी चाहिए, ताकि लोगों का विश्वास कायम रहे और टीकाकरण को आगे बढ़ाने में हमें सहूलियत हो। वैसे दो दिन के टीकाकरण अभियान के दौरान बहुत कम शिकायतें सामने आई हैं और केवल एक व्यक्ति के मरने की आशंका व्यक्त की जा रही है।
इस एक मौत की भी गहराई से पड़ताल होनी चाहिए। यदि एक व्यक्ति की भी टीके की वजह से जान गई है, तो उसके तमाम चिकित्सकीय व वैज्ञानिक पहलुओं की पड़ताल सबके सामने रखने की जरूरत है। किसी भी तरह की सनसनी या अफवाहों से सावधान रहने की जरूरत है। आज हम सूचनाओं के दौर में जी रहे हैं। जितनी ज्यादा सूचना लोगों तक पहुंचेगी, उनका विश्वास टीकाकरण अभियान पर उतना ही बढ़ेगा।