नई दिल्ली: भारत की ब्रह्मोस मिसाइल आज विश्व पटल पर राष्ट्रीय सुरक्षा समाचार की सुर्खियों में है। यह केवल एक सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल नहीं है; यह आत्मनिर्भर भारत के सामरिक संकल्प और भारतीय सेना की ताकत का वह नया प्रतीक है, जिसने आतंकवादी संगठन और क्षेत्रीय विरोधियों में खौफ पैदा कर दिया है।
भारत रक्षा समाचार : “हालिया बयान” में, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दो टूक शब्दों में बड़ा ऐलान करते हुए स्पष्ट किया कि अब ब्रह्मोस की मारक क्षमता पाकिस्तान की एक-एक इंच जमीन तक पहुँच चुकी है। उन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की सफलता को उद्धृत करते हुए कहा कि यह तो बस एक ‘ट्रेलर’ था, जिसने दुनिया को भारत की मिसाइल टेक्नोलॉजी की अचूक क्षमता का एहसास करा दिया। हम ब्रह्मोस के इतिहास, इसकी अभूतपूर्व तकनीकी विशेषताओं, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के प्रभाव, ब्रह्मोस-NG की भविष्य की योजनाओं, और इसकी बढ़ती वैश्विक मांग पर गहराई से चर्चा करेंगे।
भारत रक्षा समाचार
1. ब्रह्मोस का गौरवशाली इतिहास और डॉ. कलाम का विज़न
ब्रह्मोस मिसाइल का इतिहास भारत-रूस के अटूट रक्षा सहयोग और भारत के मिसाइल मैन डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम के दूरदर्शी नेतृत्व का परिणाम है।
उत्पत्ति: भारत-रूस सहयोग का प्रतीक
1998 में, भारत के रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया (NPOM) के बीच एक संयुक्त उद्यम (Joint Venture) के रूप में ब्रह्मोस एयरोस्पेस का गठन हुआ। इस संयुक्त उद्यम में भारत की हिस्सेदारी 50.5% है। मिसाइल का नामकरण भारत की ब्रह्मपुत्र और रूस की मोस्कवा नदी के नाम पर किया गया, जो दोनों देशों के मजबूत संबंधों का प्रतीक है।
विकास और पहला परीक्षण
इस परियोजना का उद्देश्य दुनिया की सबसे तेज और बहुमुखी क्रूज मिसाइल का विकास करना था। 12 जून 2001 को ओडिशा के चांदीपुर से इसका पहला सफल परीक्षण किया गया। इस सफलता ने भारत को उन चुनिंदा देशों में शामिल कर दिया जिनके पास सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल विकसित करने की क्षमता है।
भारतीय मिसाइल टेक्नोलॉजी, रणनीतिक महत्व में उछाल
शुरुआत में ब्रह्मोस की रेंज 290 किलोमीटर थी। मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम (MTCR) में भारत के शामिल होने के बाद, मिसाइलों की रेंज बढ़ाने पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध हट गए। इसके बाद, ब्रह्मोस की मारक क्षमता को बढ़ाकर 450 किलोमीटर किया गया, और अब 800 किलोमीटर रेंज के संस्करण पर तेजी से काम चल रहा है। यह तकनीकी प्रगति राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक बड़ा मील का पत्थर है।
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2. भारतीय सेना की ताकत और ब्रह्मोस की 5 प्रमुख विशेषताएँ
ब्रह्मोस मिसाइल को भारतीय सेना की तीनों शाखाओं (थलसेना, नौसेना और वायुसेना) में तैनात किया गया है, जो इसे भारत का सबसे बहुमुखी और घातक हथियार बनाती है।
I. अभेद्य गति: मैक 2.8 से 3.0
ब्रह्मोस की सबसे बड़ी ताकत इसकी गति है। यह मैक 2.8 से 3.0 की रफ्तार से उड़ान भरती है, यानी ध्वनि की गति से लगभग तीन गुना तेज। यह इसे विश्व की सबसे तेज क्रूज मिसाइल बनाती है। इस गति के कारण दुश्मन के एयर डिफेंस सिस्टम को इसे ट्रैक करने या मार गिराने का न के बराबर मौका मिलता है।
II. त्रिकोणीय लॉन्च क्षमता (Tri-Platform Launch)
ब्रह्मोस को तीन प्रमुख प्लेटफॉर्म से लॉन्च किया जा सकता है:
- जमीन से: मोबाइल ऑटोनॉमस लॉन्चर (Mobile Autonomous Launchers) के जरिए थलसेना द्वारा।
- समुद्र से: युद्धपोतों (जैसे INS विशाखापट्टनम, INS मोरमुगाओ) और पनडुब्बियों से।
- हवा से: भारतीय वायुसेना के सुखोई Su-30MKI लड़ाकू विमान से, जो इसे ‘स्टैंड-ऑफ रेंज वेपन’ बनाता है।
यह क्षमता भारतीय सेना को किसी भी क्षेत्र और स्थिति से दुश्मन पर हमला करने की पूर्ण सामरिक स्वतंत्रता देती है।
III. सटीक पिनपॉइंट लक्ष्य भेदन
ब्रह्मोस ‘फायर-एंड-फॉरगेट’ (Fire-and-Forget) सिद्धांत पर काम करती है। एक बार दागे जाने के बाद, यह अपने ऑनबोर्ड नेविगेशन सिस्टम (INS, GPS) और टर्मिनल रडार सीकर का उपयोग करके, एक मीटर से भी कम की सटीकता के साथ लक्ष्य को भेदती है। यह सटीकता इसे आतंकवादी ठिकानों और हाई-वैल्यू लक्ष्यों के लिए एक आदर्श हथियार बनाती है।
IV. कम ऊंचाई पर उड़ान (Sea-Skimming)
यह मिसाइल मात्र 10 मीटर की टर्मिनल ऊंचाई पर उड़ान भरने की क्षमता रखती है। समुद्र की सतह के ठीक ऊपर या पहाड़ियों की ओट में उड़ान भरने की यह खूबी इसे दुश्मन के रडार की पकड़ से लगभग बाहर रखती है, जिससे इसकी सर्वाइवल रेट (Survival Rate) बहुत अधिक हो जाता है।
V. भविष्य की रेंज: 800 किलोमीटर तक
लेटेस्ट अपडेट” डीआरडीओ (DRDO) अब ब्रह्मोस की मारक क्षमता को 800 किलोमीटर तक के लिए अपग्रेड कर रहा है। यह अपग्रेड न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन की तरफ से आने वाले किसी भी खतरे का मुकाबला करने के लिए भारत की रक्षा प्रणाली को क्षेत्रीय स्तर पर मजबूत करेगा।
3. ‘ऑपरेशन सिंदूर’: ब्रह्मोस की व्यावहारिक परीक्षा
ऑपरेशन सिंदूर में ब्रह्मोस का रोल : मई 2025 में भारतीय वायुसेना द्वारा चलाए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने पहली बार ब्रह्मोस की वास्तविक युद्धक क्षमता का प्रदर्शन किया। यह ऑपरेशन एक रणनीतिक गेम चेंजर साबित हुआ।
आतंकियों के ठिकाने ध्वस्त
ऑपरेशन सिंदूर के तहत, ब्रह्मोस मिसाइलों का इस्तेमाल करके पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) और उसके आसपास सक्रिय जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख आतंकवादी ठिकानों और प्रशिक्षण शिविरों को सटीक निशाना बनाया गया। इस कार्रवाई ने साबित कर दिया कि भारत अब सीमा पार के आतंकी नेटवर्क पर कार्रवाई करने में सक्षम है।
राजनाथ सिंह का निर्णायक बयान
ऑपरेशन की सफलता के बाद, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने दृढ़ता से कहा कि ब्रह्मोस की पहुंच अब पाकिस्तान की एक-एक इंच जमीन तक है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह कार्रवाई सिर्फ एक ‘ट्रेलर’ थी, और भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए किसी भी हद तक जाने में संकोच नहीं करेगा।
वैश्विक कूटनीति पर असर
इस ऑपरेशन ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय सेना की ताकत को स्थापित किया, जिससे कई देशों ने भारत की रक्षा प्रणाली पर विश्वास जताया। इसी कारण, ब्रह्मोस मिसाइल की वैश्विक मांग में भारी वृद्धि देखी गई।
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4. भविष्य की योजनाएं: ब्रह्मोस-NG और हाइपरसोनिक मिसाइल
भारत की मिसाइल टेक्नोलॉजी लगातार विकसित हो रही है। ब्रह्मोस की सफलता ने डीआरडीओ को अगली पीढ़ी के संस्करणों (Next-Generation Variants) पर काम करने के लिए प्रेरित किया है।
ब्रह्मोस-NG (नेक्स्ट जेनरेशन)
ब्रह्मोस-NG मौजूदा मिसाइल का एक हल्का, छोटा और स्टील्थ (Stealth) संस्करण है।
- वजन और आकार: इसका वजन मौजूदा ब्रह्मोस (लगभग 2900 किग्रा) से काफी कम (लगभग 1000-1500 किग्रा) होगा। यह 30% छोटा और पतला होगा।
- प्लेटफॉर्म: इसका हल्का डिज़ाइन इसे LCA तेजस, मिराज-2000 और मिग-29 जैसे हल्के लड़ाकू विमानों में भी तैनात करने में सक्षम बनाएगा, जिससे वायुसेना की लचीलापन बढ़ेगा।
- गति और रेंज: इसकी गति मैक 3.5 तक हो सकती है, जबकि रेंज 300-400 किलोमीटर होगी।
- उत्पादन: लखनऊ में स्थापित नई ब्रह्मोस विनिर्माण इकाई का मुख्य लक्ष्य इसी नेक्स्ट जेनरेशन मिसाइल का उत्पादन करना है। इसका परीक्षण 2025 के अंत या 2026 की शुरुआत में होने की उम्मीद है।
ब्रह्मोस-II (हाइपरसोनिक मिसाइल)
भारत और रूस मिलकर ब्रह्मोस-II पर भी काम कर रहे हैं, जो एक हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल होगी। इसकी गति मैक 7 से 8 (लगभग 9000 किमी/घंटा) तक होने की संभावना है, जो इसे दुनिया की सबसे तेज मिसाइल बना देगी और राष्ट्रीय सुरक्षा के क्षेत्र में भारत को एक रणनीतिक बढ़त दिलाएगी।
5. वैश्विक मांग और रक्षा निर्यात में भारत का उदय
ब्रह्मोस मिसाइल अब सिर्फ भारत की सुरक्षा नहीं, बल्कि रक्षा निर्यात में भारत के बढ़ते कद का भी प्रतीक है।
फिलीपींस: पहला बड़ा निर्यातक सौदा
सुपरसोनिक क्रूज मिसाइल : जनवरी 2022 में, भारत ने फिलीपींस के साथ ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम की आपूर्ति के लिए $375 मिलियन (लगभग ₹3100 करोड़) का ऐतिहासिक सौदा किया। यह सुपरसोनिक क्रूज मिसाइलों का भारत का पहला बड़ा निर्यात था, जिसने भारत को वैश्विक हथियार निर्यातक के रूप में स्थापित किया।
गोपनीय निर्यात समझौते
ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के तुरंत बाद, ब्रह्मोस एयरोस्पेस ने ₹4000 करोड़ के दो महत्वपूर्ण गोपनीय निर्यात समझौते किए। माना जाता है कि भू-राजनीतिक संवेदनशीलता के कारण इन देशों के नाम उजागर नहीं किए गए हैं। वियतनाम, इंडोनेशिया, चिली और यूएई जैसे कई अन्य देश भी इस मिसाइल प्रणाली में रुचि दिखा रहे हैं।
आत्मनिर्भरता और अर्थव्यवस्था
- रक्षा उत्पादन: ब्रह्मोस के निर्माण से देश में रक्षा उत्पादन बढ़ा है और ‘मेक इन इंडिया’ अभियान को मजबूती मिली है।
- रोजगार: लखनऊ में स्थापित उत्पादन इकाई जैसे नए केंद्र हजारों युवाओं को रोजगार प्रदान कर रहे हैं, जो राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ-साथ आर्थिक विकास में भी योगदान दे रहा है।
निष्कर्ष: राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी
भारत की ब्रह्मोस मिसाइल आज एक तकनीक से कहीं अधिक है; यह भारत के दृढ़ संकल्प का प्रमाण है। इसकी बेजोड़ गति, अचूक सटीकता और बहुमुखी तैनाती क्षमता इसे राष्ट्रीय सुरक्षा की गारंटी बनाती है। 800 किमी रेंज और ब्रह्मोस-NG जैसे भविष्य के संस्करणों के साथ, भारत न केवल अपनी सीमाओं को सुरक्षित करेगा, बल्कि एक प्रमुख वैश्विक रक्षा शक्ति के रूप में भी उभरेगा। ब्रह्मोस की दहाड़ आतंकवादी संगठनों के लिए एक स्पष्ट संदेश है: अब कोई भी बच नहीं पाएगा।
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