भारत-म्याँमार संबंध: म्याँमार में लंबे समय से चला आ रहा सत्ता संघर्ष आखिरकार खत्म हो गया। म्याँमार की जुंटा या म्याँमार की सेना ने एक सैन्य तख्तापलट में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार को हटा दिया है। इसने एक पूर्ण लोकतांत्रिक म्याँमार की स्थापना से जुड़ी दशकों पुरानी उम्मीदों को भी तोड़ दिया है।
चूँकि म्याँमार के लोकतंत्र का भविष्य अब अनिश्चित है, साथ ही इसके सामरिक महत्त्व को देखते हुए इस सैन्य तख्तापलट का दक्षिण एशिया और भारत पर व्यापक भू-राजनीतिक प्रभाव पड़ेगा।
भारत के लिये म्याँमार का रणनीतिक महत्त्व:
- पृष्ठभूमि: भारत और म्याँमार के संबंधों की आधिकारिक शुरुआत वर्ष 1951 की मैत्री संधि पर हस्ताक्षर किये जाने के बाद हुई, जिसके बाद वर्ष 1987 में प्रधानमंत्री राजीव गांधी की म्याँमार यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच अधिक सार्थक संबंधों की नींव रखी गई।
- बहु-आयामी संबंध: भारत और म्याँमार बंगाल की खाड़ी में एक लंबी भौगोलिक और समुद्री सीमा साझा करने के अलावा सांस्कृतिक, ऐतिहासिक, जातीय तथा धार्मिक संबंधों के साथ पारंपरिक रूप से बहुत सी समानताएँ रखते हैं।
- म्याँमार की भू-सामरिक अवस्थिति: भारत के लिये म्याँमार भौगोलिक रूप से महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के भूगोल के केंद्र में अवस्थित है।
- म्याँमार एकमात्र दक्षिण-पूर्व एशियाई देश है जो पूर्वोत्तर भारत के साथ थल सीमा साझा करता है, यह सीमा लगभग 1,624 किलोमीटर तक फैली है।
- विदेश नीति सिद्धांतों का संप्रवाह: म्याँमार एकमात्र ऐसा देश है जो भारत की “नेबरहुड फर्स्ट नीति” और ‘एक्ट ईस्ट नीति’ दोनों के लिये समान रूप से महत्त्वपूर्ण है।
- हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भारत की क्षेत्रीय कूटनीति को संचालित करने में म्याँमार एक महत्त्वपूर्ण घटक है और यह दक्षिण एशिया तथा दक्षिण-पूर्व एशिया को जोड़ने के लिये सेतु का कार्य करता है।
- चीन के साथ प्रतिस्पर्द्धा: यदि भारत एशिया में एक मुखर क्षेत्रीय शक्ति के रूप में स्वयं को स्थापित करना चाहता है, तो इसे ऐसी नीतियों के विकास की दिशा में काम करना होगा जो पड़ोसी देशों के साथ इसके संबंधों को बेहतर और मजबूत बनाने में सहायक हों।
- हालाँकि इस नीति के कार्यान्वयन में चीन एक बड़ी बाधा है, क्योंकि चीन का लक्ष्य भारत के पड़ोसियों पर इसके प्रभुत्त्व को समाप्त करना है।
- ऐसे में भारत और चीन दोनों ही म्याँमार पर अपना प्रभुत्त्व स्थापित करने के लिये एक अप्रत्यक्ष होड़ में शामिल हैं।
- उदाहरण के लिये हिंद महासागर हेतु स्थापित अपनी ‘सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर ऑल इन द रीज़न’ या सागर (SAGAR) नीति के तहत भारत ने म्याँमार के रखाईन प्रांत में सित्वे बंदरगाह को विकसित किया है।
- सित्वे बंदरगाह को म्याँमार में चीन समर्थित क्याउक्प्यू बंदरगाह के लिये भारत की प्रतिक्रिया के रूप में देखा जा सकता है, गौरतलब है कि क्याउक्प्यू बंदरगाह का उद्देश्य रखाईन प्रांत में चीन की भू-रणनीतिक पकड़ को मज़बूत करना है।
भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु महत्त्वपूर्ण: पूर्वोत्तर भारत के राज्य वामपंथी उग्रवाद और मादक पदार्थों के व्यापार मार्गों (स्वर्णिम त्रिभुज) से प्रभावित हैं।इन चुनौतियों से निपटने के लिये भारत और म्याँमार की सेनाओं द्वारा ऑपरेशन सनशाइन जैसे कई संयुक्त सैन्य अभियान संचालित किये गए हैं।
आर्थिक सहयोग: कई भारतीय कंपनियों ने म्याँमार में बुनियादी ढाँचा सहित बहुत से अन्य क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण आर्थिक तथा व्यापारिक समझौते किये हैं। कुछ अन्य भारतीय कंपनियों जैसे- एस्सार, गेल और ओएनजीसी विदेश लिमिटेड (ONGC Videsh Ltd.) ने म्याँमार के ऊर्जा क्षेत्र में निवेश किया है। भारत ने अपने “मेड इन इंडिया”रक्षा उद्योग और सैन्य निर्यात को बढ़ावा देने के लिये एक प्रमुख घटक के रूप में म्याँमार की पहचान की है।
Read Also:- (UFO Crash) 1947 में क्रैश हुए यूफयो के मलवे की जांच कर रहा अमेरिका, पहली बार स्वीकार किया सच….
म्याँमार के सैन्य तख्तापलट का भारत पर प्रभाव
राजनीतिक पुनर्निर्धारण: म्याँमार के सैन्य तख्तापलट को लेकर विश्व के अधिकांश देशों से तीखी प्रतिक्रिया देखने को मिली है और इसके साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका तथा अन्य पश्चिमी देशों से म्याँमार पर प्रतिबंधों का जोखिम भी बढ़ गया है।पश्चिमी देशों से प्रतिबंध का यह जोखिम म्याँमार की सेना को चीन के करीब जाने के लिये विवश कर सकता है, जो भारत के हित में नहीं होगा। इसके अतिरिक्त भारत के पड़ोस में एक विफल म्याँमार राज्य या चीन के चंगुल में फँसा एक कमज़ोर म्याँमार इस क्षेत्र में चीन के हस्तक्षेप को बढ़ा सकता है।
रोहिंग्या मुद्दे की अनदेखी: म्याँमार में लोकतंत्र को बहाल करने के किसी भी प्रयास के लिये आंग सान सू की को समर्थन देने की आवश्यकता होगी। हालाँकि रोहिंग्या संकट पर आंग सान सू की का तटस्थ बने रहना असहाय रोहिंग्या समुदाय की दुर्दशा के मुद्दे को पीछे धकेल सकता है या बहुत आसानी से उनकी चुनौतियों को भुला दिया जा सकता है।यह पूर्वोत्तर भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा हित की दृष्टि से सही नहीं होगा।
भारत के लिये एक जटिल चुनौती: हालाँकि नई परिस्थितियों में भारत के राष्ट्रीय हित स्पष्ट रूप से सत्तारूढ़ पक्ष से संबंध स्थापित करने में ही हैं, परंतु अमेरिका और पश्चिमी देशों के कड़े रुख को देखते हुए भारत के लिये खुले तौर पर जुंटा सरकार को समर्थन देना कठिन होगा.
सांस्कृतिक कूटनीति: पर्यटन की दृष्टि से म्याँमार में बौद्ध धर्म के माध्यम से भारत की धार्मिक कूटनीति का संचालन करना बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।भारत की “बौद्ध सर्किट” पहल, जिसका उद्देश्य भारत के विभिन्न राज्यों में प्राचीन बौद्ध विरासत स्थलों को जोड़कर विदेशी पर्यटकों के आगमन और राजस्व को दोगुना करना है, बौद्ध-बहुल म्याँमार के संदर्भ में उपयुक्त विकल्प हो सकता है। यह म्याँमार जैसे बौद्ध-बहुल देशों के साथ सद्भावना और विश्वास के क्षेत्र में भारत की कूटनीतिक पकड़ को मज़बूत कर सकता है।
कनेक्टिविटी में सुधार: भारत को यह समझना चाहिये कि वर्ष 2024 तक 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में म्याँमार एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।अतः भारत-म्याँमार के आर्थिक संबंधों को बेहतर बनाने में कनेक्टिविटी की केंद्रीय भूमिका होगी।इस संदर्भ में भारत-म्याँमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग और कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांज़िट ट्रांसपोर्ट (KMMTT) जैसी बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं को शीघ्रता से पूरा किया जाना चाहिये।
रोहिंग्या मुद्दे का समाधान: रोहिंग्या मुद्दे को जितनी जल्दी सुलझाया जाता है, यह भारत के लिये म्याँमार और बांग्लादेश के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों तथा उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग पर ध्यान केंद्रित करने हेतु उतना ही आसान होगा।
बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग: आखिर में आसियान और बिम्सटेक जैसे विभिन्न बहुपक्षीय मंचों पर सहयोग को बढ़ावा देना दोनों देशों के संबंधों को मज़बूती प्रदान करने में सहायक होगा।