India China disengagement: LAC जंग के लिए तैयार था भारत, लद्दाख में चीन के पीछे हटने की पूरी इनसाइड स्टोरी…

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नई दिल्ली: पूर्वी सैनिक सेक्टर में लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर भारत और चीन के सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया (India China disengagement) जारी है। विस्तारवादी चीन के हठी रवैये की वजह से पिछले 9 महीनों से पूर्वी लद्दाख सेक्टर में (India China standoff) जबरदस्त सैन्य तनाव रहा। यहां तक कि एशिया के इन दो ताकतवर देशों के (ehen India China on brink of war) बीच युद्ध तक की नौबत आ गई थी।

शातिर चीन पीछे हटने को तैयार नहीं था। फिर कुछ ऐसा हुआ, जिससे उसकी सारी हेकड़ी निकल गई। आखिरकार उसे डिसइंगेजमेंट के लिए राजी होना पड़ा। सेना की नॉर्दर्न कमांड के चीफ लेफ्टिनेंट जनरल वाईके जोशी ने अपने इंटरव्यू में भारत-चीन के सैनिकों के पीछे हटने के अंदर की कहानी (inside story of India China disengagement) बयां की है।

गलवान घाटी में चीन के कम से कम 45 सैनिक मारे गए
सीएनएन-न्यूज18 को दिए इंटरव्यू में नॉर्दर्न कमांड के चीफ ने विस्तार से बताया कि आखिर चीन को क्यों झुकना पड़ा। साथ में उन्होंने यह भी साफ किया कि डिसइंगेजमेंट से एलएसी पर यथास्थिति में कोई बदलाव नहीं होगा यानी चीन का हमारे क्षेत्रों पर अतिक्रमण नहीं होगा। लेफ्टिनेंट जनरल जोशी ने इंटरव्यू में जून 2020 में गलवान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प और उसमें चीनी पक्ष को हुए नुकसान के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि गलवान घाटी में हुई झड़प में चीन के कम से कम 45 सैनिक मारे गए।

जब सेना ने किया कुछ ऐसा कि बदल गया हवा रुख
नॉर्दर्न कमांड के चीफ ने एलएसी पर जारी डिसइंगेजमेंट की इनसाइड स्टोरी भी बताई। उन्होंने बताया कि किस तरह चीनी सैनिकों ने शुरुआत में पैंगोंग झील के उत्तरी किनारे पर फिंगर-4 तक हमारे क्षेत्र पर कब्जा कर चौंका दिया था। फिर गलवान में हिंसक झड़प हुई। उस दौरान दोनों पक्षों में लगातार बातचीत भी जारी थी लेकिन कोई नतीजा नहीं निकल रहा था। दोनों देशों के बीच कोर कमांडर लेवल की 5 दौर की बातचीत बेनतीजा हो चुकी थी। चीन हमारे इलाके में अतिक्रमण करके बैठा हुआ था और बातचीत की मेज पर उसका पलड़ा भारी था। इसके बाद भारतीय सेना ने कुछ ऐसा किया, जिससे हवा का रुख बदल गया।

रणनीतिक ऊंचाइयों पर कब्जा साबित हुआ टर्निंग पॉइंट
लेफ्टिनेंट जनरल जोशी ने बताया कि बातचीत के दौरान सफलता न मिलते देख उन्हें ऊपर से संदेश आया कि कुछ ऐसा करने की जरूरत है, जिससे बातचीत के दौरान चीन पर दबाव हो। इशारा मिलते ही भारतीय सैनिकों ने 29-30 अगस्त की दरम्यानी रात को पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर रेजांग ला और रेचिन ला की रणनीतिक तौर पर अहम चोटियों पर कब्जा कर लिया। जोशी ने बताा कि यह टर्निंग पॉइंट साबित हुआ। भारतीय फौज अब दबदबे वाली पोजिशन पर आ गई। कैलाश रेंज में भारतीय सैनिकों को पीएलए पर बढ़त हासिल हो गई। इससे अगले दौर की बातचीत में भारत का पलड़ा भारी हुआ और ड्रैगन को चेहरा बचाने के सुरक्षित तरीकों पर विचार के लिए मजबूर होना पड़ा। जोशी ने बताया कि आज अगर डिसइंगेजमेंट हो रही है तो इसकी वजह यही है कि कैलाश रेंज पर भारत ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली थी।

यह पूछने पर कि कहीं ऐसा न हो कि डिसइंगेजमेंट के दौरान भारतीय सैनिक कैलाश रेंज को जैसे ही खाली करें वैसे ही चीनी सैनिक उस पर कब्जा न कर लें, जोशी ने कहा कि ऐसा नहीं होगा। नौवें दौर की कोर कमांडर मीटिंग में यह तय हुआ है कि जिन इलाकों को खाली किया जाएगा, वहां फिर कोई कब्जा नहीं करेगा।

जब युद्ध के कगार पर खड़े थे दोनों देश
लेफ्टिनेंट जनरल जोशी से जब यह पूछा गया कि क्या उन्हें कभी लगा कि दोनों देशों के बीच युद्ध भी छिड़ सकता है तब उन्होंने कहा कि हां, एक वक्त पर उन्हें ऐसा लगा था। जोशी ने बताया कि जब 29 और 30 अगस्त की रात को जब भारतीय सैनिकों ने रेजांग ला और रेचिन ला पर कब्जा किया, तब युद्ध का आशंका थी। 31 अगस्त को चीनी सेना कैलाश रेंज में आमने-सामने आना चाहती थी और उस समय माहौल बहुत ही ज्यादा तनाव भरा था। गलवान घाटी की झड़प हो चुकी थी। हमें खुली छूट मिल चुकी थी कि जो ऑपरेशन चलाना है चलाइए। वैसे वक्त में जब आप दुश्मन को अपनी तरफ आने की कोशिश करते देख रहे हों तब युद्ध की आशंका रहेगी ही। हम युद्ध के एकदम कगार पर थे और वह वक्त हमारे लिए बहुत चुनौतीपूर्ण था।

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