Ramappa Temple | इस मंदिर के निर्माण के दौरान बेहतर नक्काशी और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. इस मंदिर का प्रभावशाली प्रवेशद्वार, हजार विशाल खम्भे और छतों के शिलालेख आकर्षण केंद्र हैं.
Ramappa Temple | तेलंगाना में स्थित काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा मंदिर) (Kakatiya Rudreshwara (Ramappa) Temple) मंदिर विश्व धरोहर में शामिल किया गया है. रविवार को यूनेस्को ने ऐलान किया कि भारत के तेलंगाना में स्थित काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर को विश्व धरोहर स्थल के रूप में शामिल किया जा रहा है.
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Ramappa Temple | वारंगल स्थित यह शिव मंदिर इकलौता ऐसा मंदिर है, जिसका नाम इसके शिल्पकार रामप्पा के नाम पर रखा गया. काकतीय वंश के महाराज ने इस मंदिर का निर्माण 12वीं सदी में करवाया था. खास बात यह है कि इस दौर में बने ज्यादातर मंदिर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं, लेकिन कई प्राकृतिक आपदाओं के बाद भी इस मंदिर को कोई खास नुकसान नहीं पहुंचा है. यह शोध का विषय भी रहा है.
मंदिर के इतिहास की बात की जाए तो इसका निर्माण काकतिय नरेश राजा रूद्र देव ने 1163 में करवाया था. इस मंदिर के निर्माण के दौरान बेहतर नक्काशी और उन्नत तकनीक का इस्तेमाल किया गया था. इस मंदिर का प्रभावशाली प्रवेशद्वार, हजार विशाल खम्भे और छतों के शिलालेख आकर्षण केंद्र हैं. हज़ार स्तंभो वाला मंदिर यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल है और दक्षिण भारत के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है.
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शिव, श्रीहरि और सूर्य देवता को समर्पित है ये मंदिर | Ramappa Temple for world heritage site
वारंगल का रुद्रेश्वर का एक मात्र ऐसा मंदिर है जो एक तारे के आकार का बना है. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां एक ही छत के नीचे तीन देवताओं की मूर्तियां स्थापित है. जिसमे शिव और विष्णु के साथ सूर्य देवता शामिल है. इसलिए इसे ‘त्रिकुटल्यम’ भी कहते हैं.
आम तौर पर महादेव और श्री हरि के साथ ब्रह्मा की ही पूजा होती है. लेकिन यह ऐसा इकलौता मंदिर हैं जहां ब्रह्मा की जगह सूर्य देवता विराजमान हैं.
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क्या है मंदिर की खासियत?
तेलंगाना के काकतिया वंश के महाराजा गणपति देव ने सन 1213 में इन मंदिर का निर्माण शुरू करवाया था। मंदिर के शिल्पकार रामप्पा के काम को देखकर महाराजा गणपति देव काफी प्रसन्न हुए थे और इसका नाम रामप्पा के नाम पर रख दिया था। रामप्पा मंदिर को बनने में 40 साल का समय लगा था। छह फीट ऊंचे प्लैटफॉर्म पर बने इस मंदिर की दीवारों पर महाभारत और रामायण के दृश्य उकेरे हुए हैं। मंदिर में भगवान शिव के वाहन नंदी की एक विशाल मूर्ति भी है, जिसकी ऊंचाई नौ फीट है। शिवरात्रि और सावन के महीने में यहां काफी श्रद्धालु पहुंचते हैं।
800 साल पुराने इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत है इसकी मजबूती। क्योंकि उस वक्त के ज्यादा मंदिर जीर्ण-शीर्ण हो चुके हैं। जब इसकी चर्चा हुई तो पुरातत्व वैज्ञानिकों ने मंदिर की जांच की। जब कुछ पता नहीं चला तो उन्होंने इसके पत्थर की जांच की। जांच में पता चला कि इस मंदिर को तैरने वाले पत्थरों से बनाया गया है। इस वजह से इसके पत्थर हल्के हैं और कम टूटते हैं। लेकिन ये अभी भी रहस्य है कि पानी में तैरनेवाले ऐसे पत्थर आये कहां से।
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