Rama Ekadashi | आज रमा एकादशी जानें, शुभ मुहूर्त और रमा एकादशी व्रत, विष्णु पूजा से गुरु दोष होंगे दूर, जानें मुहूर्त, राहुकाल और दिशाशूल

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Rama Ekadashi | आज रमा एकादशी जानें, शुभ मुहूर्त और रमा एकादशी व्रत, विष्णु पूजा से गुरु दोष होंगे दूर, जानें मुहूर्त, राहुकाल और दिशाशूल
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Rama Ekadashi November 2023 in Hindi | आज रमा एकादशी (Rama Ekadashi) व्रत है. आज के दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. आज कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि, उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र, वैद्रुति योग, बलव करण, गुरुवार दिन और दक्षिण दिशाशूल है. रमा एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, पाप नष्ट होते हैं और कष्टों से मुक्ति मिलती है. जीवन के अंत में हरि कृपा से मोक्ष की प्राप्ति होती है. भगवान विष्णु के वैकुंठ धाम में स्थान मिलता है.

आज का गुरुवार के दिन एकादशी व्रत का होना बड़ा शुभ है. गुरुवार को भी भगवान विष्णु की पूजा करते हैं. यह दिन भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित हैं. भगवान विष्णु को पीले फूल, अक्षत्, हल्दी, पंचामृत, तुलसी के पत्ते आदि अर्पित करें. उनको चने की दाल और गुड़ का भोग लगाएं. विष्णु सहस्रनाम और गुरुवार व्रत कथा का पाठ करें. इससे गुरु ग्रह के दोष दूर होंगे और विवाह में होने वाली देरी खत्म होगी.

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गुरुवार के दिन आपको देव गुरु विष्णु की पूजा करनी चाहिए. आज केले के पौधे की भी पूजा करते हैं. उसमें भगवान विष्णु का वास होता है. पूजा के समय बृहस्पति चालीसा का पाठ करें. गुरु के बीज मंत्र ॐ बृं बृहस्पतये नम: त्रका जाप करें. इस मंत्र का जाप हल्दी या तुलसी की माला से कर सकते हैं.

हाइलाइट्स

  • रमा एकादशी व्रत रखने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है, पाप नष्ट होते हैं.
  • गुरुवार को हल्दी, चने की दाल, बेसन, पीले वस्त्र, पीतल आदि का दान करना चाहिए.
  • भगवान विष्णु को पीले फूल, अक्षत्, हल्दी, पंचामृत, तुलसी के पत्ते आदि अर्पित करें.

गुरुवार को हल्दी, चने की दाल, बेसन, पीले वस्त्र, पीतल आदि का दान करना चाहिए. इससे कुंडली में गुरु की स्थिति मजबूत होती है. इससे गुरु दोष भी दूर होता है. गुरु के मजबूत होने से शिक्षा में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं, विवाह का योग बनता है, परिवार में मांगलिक कार्य होते हैं. आइए वैदकि पंचांग से जानते हैं आज का शुभ मुहूर्त, सूर्योदय, चंद्रोदय, भद्रा, राहुकाल, दिशाशूल आदि.

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09 नवंबर 2023 का पंचांग
आज की तिथि – कार्तिक कृष्णपक्ष एकादशी
आज का नक्षत्र – उत्तराफाल्गुनी
आज का करण – बलव
आज का पक्ष – कृष्ण
आज का योग – वैद्रुति
आज का वार – गुरुवार
आज का दिशाशूल- दक्षिण

सूर्योदय-सूर्यास्त और चंद्रोदय-चंद्रास्त का समय
सूर्योदय – 06:48:00 AM
सूर्यास्त – 05:57:00 PM
चन्द्रोदय – 27:37:00 AM
चन्द्रास्त – 15:16:59 PM
चन्द्र राशि – कन्या

हिन्दू मास एवं वर्ष
शक सम्वत – 1945 शुभकृत
विक्रम सम्वत – 2080
दिन काल – 10:52:15
मास अमांत – आश्विन
मास पूर्णिमांत – कार्तिक
शुभ समय – 11:43:01 से 12:26:30 तक

अशुभ समय (अशुभ मुहूर्त)
दुष्टमुहूर्त– 10:16:03 से 10:59:32 तक, 14:36:57 से 15:20:26 तक
कुलिक– 10:16:03 से 10:59:32 तक
कंटक– 14:36:57 से 15:20:26 तक
राहु काल– 13:46 से 15:10 तक
कालवेला/अर्द्धयाम– 16:03:55 से 16:47:24 तक
यमघण्ट– 07:22:06 से 08:05:36 तक
यमगण्ड– 06:38:38 से 08:00:09 तक
गुलिक काल– 09:36 से 10:59 तक

Rama Ekadashi व्रत पारण समय: 9 नवंबर, सुबह 06:39 ए एम से 08:50 ए एम तक

Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी व्रत कथा, इसके पाठ से ही मिलेगा व्रत का पूरा

लाभ

Rama Ekadashi Vrat Katha: रमा एकादशी का व्रत कार्तिक मास की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है। जो व्यक्ति एकादशी का व्रत करता है उसे बैकुंठ में स्थान प्राप्त होता है। साथ ही धरती लोक पर जब तक वह रहता है उसपर भगवान विष्णु की विशेष कृपा रहती है। यहां पढ़ें पद्म पुराण में वर्णित रमा एकादशी की कथा।

रमा एकादशी व्रत कथा: युधिष्ठिर ने पूछा- जनार्दन मुझपर आपका कोह है; अतः कृपा करके बताइये। कार्तिक कृष्ण पक्षमें कौन-सी एकादशी होती है ? भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन् ! कार्तिकके कृष्णपक्षमें जो परम कल्याणमयी एकादशी होती है, वह ‘रमा’ के नाम से विख्यात है। ‘रमा’ परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापोंको हरनेवाली है। पूर्वकालमे मुचुकुन्द नामसे विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान् श्रीविष्णुके भक्त और सत्यप्रति थे।

निष्कण्टक राज्यका शासन करते हुए उस राजाके यहां नदियों मे श्रेष्ठ चन्द्रभागा कन्या के रूपमें उत्पन्नहुई। राजा ने चन्द्रसेन कुमार शोभनके साथ उसका विवाह कर दिया। एक समयकी बात है, शोभन अपने ससुर के घर मन्दराचल पर्वत पर आये। उनके यहाँ दशमीका दिन आनेपर समूचे ढिढोरा पिटवाया जाता था कि एकादशीके दिन कोई भी भोजन न करे। डंके की घोषणा सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से अब मुझे इस समय क्या करना चाहिये, इसकी शिक्षा दो।

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चन्द्रभागा बोली -प्रभो ! पिता के घरपर तो एकादशी को कोई भी भोजन नहीं कर सकता। हाथी, घोड़े, हाथियों के बच्चे तथा अन्यान्य पशु भी अन्न, घास तथा जल तृण का आहार नहीं करने पाते; फिर मनुष्य एकादशी के दिन कैसे भोजन कर सकते हैं। प्राणनाथ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी। इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये।

शोभन ने कहा-प्रिये! तुम्हारा कहना सत्य है, मैं भी आज उपवास करूंगा। दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं—इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभनने व्रतके नियमका पालन किया। क्षुधासे उनके शरीरमें पीड़ा होने लगी; अतः वे बहुत दुःखी हुए। भूखकी चिन्तामें पड़े-पड़े सूर्यास्त हो गया। रात्रि आयी, जो हरिपूजापरायण तथा जागरणमे आसक्त वैष्णव मनुष्योंका हर्ष बढ़ानेवाली थी; परन्तु वही रात्रि शोभनके लिये अत्यन्त दुःखदाविनी हुई। सूर्योदय होते-होते उनका प्राणान्त हो गया। राजा मुचुकुन्दने राजोचित काष्ठोंसे शोभनका दाह-संस्कार कराया।

चन्द्रभागा पतिका पारलौकिक कर्म करके पिताके ही घरपर रहने लगी। नृपश्रेष्ठ! ‘रमा’ नामक एकादशीके व्रतके प्रभावसे शोभन मन्दराचलके शिखरपर बसे हुए परम रमणीय देवपुरको प्राप्त हुआ। वहाँ शोभन द्वितीय बेरकी भाँति शोभा पाने लगा । राजा मुचुकुन्दके नगरमे सोमशर्मा नामसे विख्यात एक ब्राह्मण रहते थे, वे तीर्थयात्राके प्रसङ्गसे घूमते हुए कभी मन्दराचल पर्वतपर गये। वहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये। राजाके दामादको पहचानकर वे उनके समीप गये। शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्माको आया जान शीघ्र ही आसनसे उठकर खड़े हो गये और उन्हें प्रणाम किया। फिर क्रमश: अपने शशुर राजा कुन्दका, प्रिय पत्नी चन्द्रभागका तथा समस्त नगरका कुशल- समाचार पूछा।

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सोमशमन कहा— राजन् । वहां सबकी कुवाल है। यहां तो अद्भुत आश्चर्य की बात है ! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसीने भी नहीं देखा होगा। बताओ तो सही, तुम्हें इस नगरकी प्राप्ति कैसे हुई ?

शोभन बोले- द्विजेन्द्र ! कार्तिक कृष्णपक्षमें जो ‘रमा’ नामकी एकादशी होती है, उसीका व्रत करनेसे मुझे ऐसे नगरकी प्रप्ति हुई है। ब्रह्मन् ! मैने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रतका अनुष्ठान किया था; इसलिये मै ऐसा मानता हूँ कि यह नगर सदा स्थिर रहनेवाला नहीं है। आप मुचुकुन्दकी सुन्दरी कन्या चन्द्रभागासे यह सारा वृत्तान्त कहियेगा। ‘शोधनकी बात सुनकर सोमब्राह्मण मुचुकुन्द- पुरमें गये और वहाँ चन्द्रभागाके सामने उन्होंने सारा ‘वृत्तान्त कह सुनाया।

सोमशर्मा बोले— शुभे। मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा है तथा इन्द्रपुरीके समान उनके दुर्धर्ष नगरका भी अवलोकन किया है। वे उसे अस्थिर बतलाते थे। तुम उसको स्थिर बनाओ । चन्द्रभागा ने कहा— ब्रह्मयें! मेरे मनमें पतिके दर्शनकी लालसा लगी हुई है। आप मुझे वहां ले चलिये। मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊंगी।

भगवान् श्रीकृष्ण कहते हैं-राजन्! चन्द्रभागाकी बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वतके निकट वामदेव मुनिके आश्रमपर गये। वहां ऋषिके मन्त्रको शक्ति तथा एकादशी- सेवनके प्रभावसे चन्द्रभागाका शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली। इसके बाद वह पतिके समीप गयी। उस समय उसके नेत्र हर्षोल्लाससे खिल रहे थे। अपनी प्रिय पत्नीको आयी देख शोभनको बड़ी प्रसन्नता हुई।

उन्होंने उसे बुलाकर अपने वामभागमे सिंहासनपर बिठायाः तदनन्तर चन्द्रभागाने हर्षमें भरकर अपने प्रियमसे यह प्रिय वचन कहा—नाथ! मै हितकी बात कहती हूँ, सुनिये। पिताके घरमें रहते समय जब मेरी अवस्था आठ वर्षसे अधिक हो गयी, तभी से लेकर आजतक मैने जो एकादशीके व्रत किये हैं और उनसे मेरे भीतर जो पुण्य सञ्चित हुआ है, उसके प्रभावसे यह नगर कल्पके अन्ततक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकारके मनोवाञ्छित वैभवसे समृद्धिशाली होगा।

नृपश्रेष्ठ! इस प्रकार ‘रमा’ व्रतके प्रभावसे चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रूप और दिव्य आभरणोंसे विभूषित हो अपने पतिके साथ मन्दराचलके शिखरपर विहार करती है। राजन् ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशीका वर्णन किया है। यह चिन्तामणि तथा कामधेनुके समान सब मनोरथोंको पूर्ण करनेवाली है।

मैंने दोनों पक्षोंके एकादशीव्रत का पापनाशक माहात्य बताया है। जैसी कृष्णपक्षको एकादशी है, वैसी ही शुरुपक्षकी भी है; उनमें भेद नहीं करना चाहिये। जैसे सफेद रंग की गाय हो या काले रंगकी, दोनोंका दूध एक-सा ही होता है, इसी प्रकार दोनों पक्षोंकी ‘एकादशियों समान फल देनेवाली है। मनुष्य एकादशी का माहात्म्य सुनता है, वह सब पापो मुक्त ये श्रीविष्णुलोक प्रतिष्ठित होता है।

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